एक नए “जैनी” का “उदय”

जब जब “जैन धर्म” पर किसी ने भी
“कुठाराघात” करने की चेष्टा की है,
सभी जैन “एक” हुवे हैं.

सभी मत-मतान्तर “ऊपर” टांग दिए गए हैं
वर्तमान में “संथारा” को लेकर!

“आत्म-हत्या” वास्तव में “आत्मा” की “ह्त्या” नहीं है.
“शरीर” को  जबरदस्ती “निर्दयता” से “मारना” है,
“एकांत” में.

 

“पाप” एकांत में ही किया जाता है,
यदि खुले में किया भी जाता है
तो करने के बाद “आरोपी” भागता फिरता है.

“आत्म-हत्या” का पूरे विश्व में एक भी “समर्थक” नहीं मिलेगा.
कोई जैनी भी नहीं.

जैन धर्म तो कहता है कि मनुष्य भव बड़ी मुश्किल से मिला है,
इसे यूँ ही नहीं गंवाना है, परिस्थितियां चाहे कुछ भी हों.
पर “आत्म-कल्याण” करना है.

संथारा पर रोक जैनिज़्म पर हमला है, क्योंकि जैन धर्म में “आत्मा-कल्याण” पर जितना कहा गया है, उतना किसी भी अन्य धर्म में नहीं.
संथारा से किसी को भी कोई “नुक्सान” नहीं होता, क्योंकि “संथारा” लेने वाला वो ही होता है, जिसका “शरीर” वृद्धावस्था या भयंकर रोग के कारण अब और कोई भी कार्य करने के योग्य नहीं रह गया हो.

 

तो फिर आम आदमी को “समझ” आ गयी होगी
कि क्यों एक करोड़ जैनी “संथारा” पर एक मत हैं!

जब जब जैन धर्म पर “संकट” आया है,
तब तब वो “खिल” कर” और भी “सुगन्धित” बना है.

गीता में कहा श्री कृष्ण ने कहा है : यदा यदा ही धर्मस्य…

पर जैन धर्म में किसी के भी अवतार की आवश्यकता नहीं है
क्योंकि
वर्तमान में भले ही “तीर्थंकर” उपस्थित ना हों,
पर जैन धर्म का २५ वां तीर्थंकर “श्रीसंघ” तो उपस्थित ही है.

 

पुण्योदय हुआ है श्री संघ का – एक होने के लिए!
कुछ “निमित्त” मिला है – एक होने के लिए!
अब इरादा है नेक और काम है एक!

संगठित होने का!

“जैन संघ” का इतिहास देखेंगे तो पता पड़ेगा कि
संकट की घडी में जैन समाज को हर समय “विशेष” उपलब्धि हुई है:

कारण?

जैन धर्म की शुरुआत ही महामंत्र “नवकार” से होती है.
फिर समाधि-सूत्र “लोगस्स” आता है तो हर प्रकार के उपसर्ग को हरने में समर्थ है.

 

फिर भी विशेष कारण उपस्थित होने पर :

१. “उवसग्गहरं” जैसा महास्तोत्र मिला भद्रबाहु स्वामीजी से :
व्यंतर द्वारा मरकी रोग फ़ैलाने के कारण.

२. “लघुशान्ति” जैसा स्तोत्र मिला : तक्षशिला नगरी में दुष्ट “शाकम्भरी” द्वारा मरकी रोग फ़ैलाने के कारण.

३. “भक्तामर” जैसा महा प्रभावशाली स्तोत्र मिला : श्री मानतुंगसुरी जी को बेड़ियां डालकर काल कोठरी में डालने के कारण

४. “कल्याणमन्दिर” स्तोत्र मिला : श्री सिद्धसेन दिवाकर के कारण जहाँ जैन धर्म को नीचा दिखाने का भरपूर प्रयास किया गया था और “अवन्ति पार्श्वनाथ” प्रकट हुवे “शिवलिंग” में से.

ऐसे हज़ारों दृष्टांत हैं.

वक्त है सभी जैनी  “रोज नवकार” गुनें,
ये समस्या बहुत जल्दी निपट जायेगी.
इसमें कोई शंका नहीं है.

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