श्री मंत्राधिराज पार्श्वनाथ स्तोत्रम्

बहुत ही प्रचलित और अति प्रभावक स्तोत्र है :

श्री पार्श्व: पातु वो नित्यं, जिन: परमशंकर:
नाथ: परमशक्तिश्च, शरण्य: सर्वकामद: ||१||

सर्वविघ्नहर: स्वामी, सर्वसिद्धिप्रदायक:
सर्वसत्त्वहितो योगी, श्रीकर: परमार्थद: ||२||

उपरोक्त “दो गाथा” ही सर्व कार्य सिद्धिदायक है.

 

परन्तु “Conditions” बड़ी “strict” (कड़ी)  हैं.
एक जैनी जो “सम्यक्त्त्वधारी” हो उसे ही इसका फल प्राप्त होता है.

“श्रीकर: परमार्थद:”
ये शब्द “साधक” के जीवन को परोपकार की ओर ले जाते हैं.
जो “मन” में परोपकार नहीं करना चाहता, उसकी “Application
ही Reject” हो जाती है.

पहली गाथा में कहा गया है कि-
श्री पार्श्व: पातु वो नित्यं, जिन: परमशंकर:
नाथ: परमशक्तिश्च, शरण्य: सर्वकामद: ||१||

 

“श्री पार्श्वनाथ भगवान का “नित्य” “स्मरण” एवं उनकी “शरण” लेने वाले की सब कामनाएं पूरी हो जाती हैं.
(इसका अर्थ ये हुआ कि Sixer in First Ball – पहली ही बॉल में सिक्सर)!

“नित्य” स्मरण इसलिए करना है कि “चाहिए” भी तो “रोज” है!

दूसरी  गाथा में कहा गया है कि-
सर्वविघ्नहर: स्वामी, सर्वसिद्धिप्रदायक:
सर्वसत्त्वहितो योगी, श्रीकर: परमार्थद: ||२||

सारे विघ्नों का नाश, सर्वसिद्धिदायक, सभी का हित और “परमार्थ” के लिए धन देने वाले श्री पार्श्वनाथ भगवान!(“Means” automatic generation of Good “Means” – धन प्राप्त होगा दूसरों का भला करने के लिए! ).

 

जैन मंत्र रहस्य:

जितने भी जैन मंत्र हैं, वो हमारी “गति” को “दुर्गति” में नहीं ले जाने का “बीमा” (Insurance) करते हैं. इससे एक कदम और आगे – परोपकार के लिए धन खर्च कर सकना अर्थात “पुण्य” का “regular flow!”

इस पंचम काल में अच्छी भावना का “बना रहना” और यदि नहीं है तो अच्छी भावना “आना,” क्या चमत्कार से कम है!

ये स्तोत्र ३३ गाथा का है और “शब्द” इस प्रकार गुंथे हुवे हैं कि
“मंत्र-जप” कैसे करना है वो भी इसी स्तोत्र में लिखा हुआ है.

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