“विज्ञान” और ‘धर्म”

वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमें “विज्ञान” के बारे में बताती है और जो भी वैज्ञानिक कहते  हैं, उस पर हम आँखें बंद कर के विश्वास कर लेते हैं, भले ही हमने उसे ना देखा हो. स्पेस के बारे में उनकी “खोज” अभी भी जारी है, मेडिकल साइंस के बारे में उनकी “खोज” अभी भी जारी है, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में भी नित्य नयी खोज की जा रही है, इत्यादि. खोज वहीँ की जाती है, जो अभी प्राप्त नहीं है.

 

कुछ (कहे जाने वाले) पढ़े लिखे लोग कहते हैं कि “धर्म” में “विज्ञान (साइंस)” की बातें  नहीं होती, इसलिए ‘धर्म” पर  विश्वास नहीं होता (खुद ने मानो पूरा  “विज्ञान” पढ़ लिया हो और अपने को “वैज्ञानिक” मानते हों). मूर्खों को इतना भी पता नहीं है की “विज्ञान’ में “धर्म” जैसी बात होती, तो वो “धर्म” जैसे विषय को अलग से जानने की जरूरत क्यों होती?

विज्ञान क्या है? एक क्रमबद्ध जानकारी – जीवन और उससे सम्बंधित विषयों की.

अब सबसे इंटरेस्टिंग बात ये है कि “धर्म” में तो विज्ञान है परन्तु “विज्ञान” में “धर्म” नहीं है.  जबकि उसके अनुसार “वस्तु” का गुण-धर्म होता है.

 

धर्म है पहले “खुद” का जीवन सुधारना और फिर दूसरों का.
विज्ञान है : दूसरों को कुछ “बताने” के लिए खोज करने का !
“धर्म” भी अणु-परमाणु की बात करता है. उसकी शक्ति की बात करता है.
“विज्ञान” ने क्या किया?
“अणु-परमाणु” बम बनाकर सभी के लिए सदा के लिए भय पैदा किया.
मतलब कि जो भी “उन्नति” विज्ञान की देन कही जा रही है, उसे समाप्त करने की “व्यवस्था” भी विज्ञान ने ही कर दी है.
अब सबके सामने प्रश्न है:
“अणु-परमाणु” बम से कैसे बचा जाए.
“विज्ञान” के पास इसका कोई उत्तर नहीं है.

 

परन्तु “धर्म” के पास इसका उत्तर है:
“ध्यान दो अपनी “आत्मा” पर क्योंकि वही अजर, अमर और अविनाशी है.
“संसार” की कोई ताकत इसे मार नहीं सकती.

“आत्मा” का “उद्धार” भी हमारे ही हाथ में है,
साइंस तो “किसी” का अस्तित्त्व तब मानता है जब वो उसे “देख” ले या उसके “प्रमाण” जुटा ले.

एक  समय था जब जैन शास्त्रों में महावीर चरित्र पढ़ते समय इन्द्र द्वारा हरिणगमैशी को आदेश देने की बात आती है – भगवान महावीर के “गर्भ” को बदलने का. “आधुनिक” पढ़ाई करने वाले उस समय उसे “इम्पॉसिबल” मानते थे. आज?

 

इसलिए जैन धर्म की जितनी बातें शास्त्र से प्रमाणित है, उसे विज्ञान द्वारा प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

कारण?
“धर्म” में हम कोई “भौतिक-विज्ञान” नहीं पढ़ते!

(और यदि पढ़ना शुरू किया तो उसका कोई पार ही नहीं है. इतना जीव-विचार, चौदह राजलोक, इत्यादि के बारे में जैन धर्म में उपलब्ध है).

क्या आप वो जानने की चेष्टा करेंगे?

(फोटो: हिरोशिमा बम काण्ड में बचे हुवे कुछ पीड़ित – – ये फोटो कोई देखना भी पसंद नहीं करेगा, परन्तु जिस पर बीती है, जरा उसका विचार करें. )

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