सहस्त्रफ़णा पार्श्वनाथ

भगवान पार्श्वनाथ की जितनी भी प्रतिमाजी विद्यमान है

वो सामान्यतया 7,9,11 या  13 फणों में है,

कुछ बहुत प्राचीन प्रतिमाजी 108, 1000 या 1008 फणों में भी विद्यमान है

जिन मंदिरों में श्रेष्ठ से श्रेष्ठ प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा होती है. मुखाकृति और शरीर की बनावट पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है जिससे जो भी “दर्शन” करे, उसे ऐसा लगे कि मैं “भगवान” के पास ही आ गया हूँ.

(“मूर्ति” शिल्परचना है और वही मूर्ति “प्रतिष्ठा” के समय अभिमंत्रित होने से “प्रतिमाजी” कहलाती है जो “तीर्थंकरों” का ही स्वरुप है और वे देव अधिष्ठित होती है).

 

मंत्र :

1. ॐ  ह्रीं श्रीम्
धरणेन्द्र पद्मावती पूजिताय
श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथाय
नमः ||

(रोज 5 माला गिनें –  सारे कार्य आनंदपूर्वक होते हैं

– ३ महीने या ६ महीने में सिद्ध – “समय” कम-ज्यादा आपके भाव कैसे हैं, उस पर निर्भर करता हैं )

 

2.  ॐ  ह्रीं श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथाय नमः

मम मनोवांच्छितं कुरु कुरु सिद्धम् ||

(रोज 5 माला गिनें –  यदि एक ही इच्छा पूरी करनी हो

– 3,  8, 12 या 18 महीने में सिद्ध – “समय” कम-ज्यादा आपके भाव कैसे हैं, उस पर निर्भर करता हैं )

 

3.  श्री श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथाय नमः ||

(रोज 3  माला गिनें –  मन में अति प्रसन्नता रहेगी – मन में प्रसन्नता तभी रहती है जब सारे कार्य “आनंदपूर्वक” हो रहे हों – 7  महीने में सिद्ध)

फोटो :

“अभिमंत्रित” अद्भुत मूर्ति

श्री सहस्त्रफ़णा पार्श्वनाथ

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