कार्य में रूकावट और उपाय

एक-दो बार कार्य में रूकावट आये तो वो व्यक्ति को “सावधान” रखती है
और उसमें ये अहंकार नहीं आता कि “मैं” तो सारे कार्य अच्छी तरह कर लेता हूँ.

यदि बार-बार रूकावट आये तो वो व्यक्ति को “सावधान” हो जाना चाहिए :

१. बाधाएं किसके कारण आयीं, उसकी लिस्ट बनाएं.
२. स्वयं की लापरवाही का उसमें कितना योगदान है.
३. यदि बाधाएं “अलग-अलग” व्यक्तिओं या स्रोतों से हैं, तो उसके बारे में जरा विचार करें.
४. ज्योतिष का सहारा लें और पता करें कि कही “काल सर्प योग” या “पितृ दोष” तो नहीं है.

(यदि इस झंझट में ना पड़ना चाहें और “जिन-धर्म” पर ही पूर्ण श्रद्धा हो तो मात्र और मात्र “श्री पार्श्वनाथ भगवान” के मंदिर में रोज दर्शन-पूजन करें और ३ उवसग्गहरं रोज गुनें – “उवसग्गहरं” वाली पोस्ट पढ़ें).

 

विशेष सावधानी:

यदि कार्य लगभग पूरा होने जैसे हैं और अंत समय पर अटक जाते हैं
तो ये समझ लेना चाहिए कि

१. या तो पुण्य की कमी है
२. या किसी ने “दुष्टता” की है. (पूरे ब्रह्माण्ड में कुछ देव “विघ्नसंतोषी” होते हैं जिन्हें कार्य में रूकावट डालने में बड़ा मजा आता है – समाज में भी ऐसे व्यक्ति मिल जाते हैं ).
३. किसी “क्षुद्र” देव-देवी (भेरुंजी, पितरजी इत्यादि) को ध्याते हों और उनको प्रसाद चढाने में कोई भूल हो, तो प्रसाद जरूर चढ़ा दें. प्रसाद ना देने पर ये “रुष्ट” हो जाते हैं. (समकित धारी देव-देवी कभी किसी पर रुष्ट नहीं होते क्योंकि वो जिनशासन की सेवा में लगे रहते हैं. वो रुष्ट तभी होते हैं जब कोई “जिनशासन” के कार्यों में रूकावट डालते हों).

 

४. उपरोक्त कोई ऐसी बात ना भी हो (आपको ऐसी कोई भी गलती अपने ध्यान में ना हो) और आप उन्हें ध्याते हों, तो उन्हें समय समय पर प्रसाद चढ़ा दिया करें.

५. जरूरत पड़े तो आप प्रसाद चढ़ाते वक्त मन में ये भी बोल सकते हैं कि यदि मेरा कार्य नहीं हुआ तो आइन्दा से मैं कोई प्रसाद तुम्हें नहीं चढ़ाऊंगा. ऐसा करने से यदि आपका कार्य फिर भी ना हुआ तो आप उनसे छूट सकते हैं. फिर प्रसाद ना चढ़ाये तो वो “रुष्ट” नहीं होंगे. या तो वो “संकेत” दे देंगे कि ये कार्य उनके बस का नहीं है. ये संकेत भी वो ज्यादातर आपके “अंतर्मन” में ही देते हैं, जिसे ज्यादातर लोग “अच्छी तरह” सुनते नहीं है और अपनी “बुद्धि” का प्रयोग करते रहते हैं.

ऊपर बताये तरीके से कार्य हो जाए तो ठीक
अन्यथा (otherwise) आप नीचे का मंत्र गुणना चालू कर दें.

 

ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमः

(ये मंत्र पहले आपके पाप को “नष्ट” करेगा और “पुण्य” को बढ़ाएगा जिससे “अन्य देव” भी आपसे प्रसन्न होंगे. फिर “समृद्धि” लाएगा पर कड़ी शर्त ये है कि  आप “अरिहंत” द्वारा बताये गए मार्ग पर चलें. यदि ऐसा ना हो, तो ये मंत्र काम तो करेगा पर उतना नहीं जितना कर सकता है).

ये मंत्र एक से दो साल का समय ले सकता है ( रोज रोज की बाधाओं से बचने के लिए फिर  भी सस्ता है, ना किसी के चक्कर काटना, ना धन का खर्च और मन की शांति – जप से मन में “विश्वास तुरंत आता है और “फालतू” विचारों को “ताला” लग जाता है.

बाधाएं आये ही नहीं, इसके लिए भक्ति और विश्वास से उपरोक्त मंत्र की १० माला तीर्थंकरों की किसी भी मूर्ति/फोटो/तस्वीर के आगे रोज गुणें. (घर पर हो तो दीपक और अगरबत्ती करें -इससे अधिष्ठायक देव प्रसन्न होते हैं).

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