bhakti ki shakti, jainism, jain mantras

भक्ति की शक्ति !

“दार्शनिक” (Philosopher) “सुकरात” (Socrates) को जहर का प्याला पिलाया गया,
उनका जीवन बचा नहीं.
यही किस्सा “स्वामी दयानन्द” (Swami Dayanand) के साथ भी हुआ,
उनका जीवन भी बचा नहीं.
ओशो (Osho) को भी विदेशों में “SLOW POISON” दिया गया,
फिर वो ज्यादा दिन नहीं रहे.
मेरी दृष्टिकोण में वो भी एक “दार्शनिक” थे,
“आध्यात्मिक” पुरुष नहीं.
(ओशोप्रेमी इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे, मेरा ऐसा कोई आग्रह भी नहीं है).
“मीरा” (Meera) को “जहर” का प्याला पिलाया गया,
वो तो “जहर” पीकर भी “अमर” हो गयी.
“आध्यात्म-सम्राट” आनंदघन (Anandghan) जी तो ये कह पाए:
अब हम अमर भए, ना मरेंगे….
(ये जाना जाता है कि वो अभी महाविदेह क्षेत्र में “केवली” की अवस्था में हैं).

“विचारणीय” प्रश्न:
1. “जीवन के अंतिम क्षण” में “अकाल-मृत्यु” किस बात का सूचक है?
2. “भीष्म पितामह” की “इच्छा-मृत्यु” के बारे में आपका क्या विचार है?
3. “हिला” देने वाला प्रश्न:
जैन साधू-साध्वियों की विहार में “अकाल-मृत्यु” पर आपका क्या विचार है?
उत्तर मैं नहीं देना चाहता,
पिछले लगभग एक साल से जो रोज jainmantras.com पढ़ते हैं,
वो इसका उत्तर बड़े आराम से दे सकेंगे.

नोट: प्रश्न के उत्तर इसी पोस्ट में “गर्भित” रूप में दिया गया ही है.
उत्तर एक ही “शब्द” में है.
परन्तु “एक समान” प्रभाव वाले “दो उत्तर” हैं.
आनंदघन जी का तो “दोनों उत्तरों” पर एक सा अधिकार था.

error: Content is protected !!