chamatkar

चमत्कार!

हमारे जीवन में रोज चमत्कार होते हैं!
पर हम उनको  अच्छी तरह ना देखकर जो दूसरे कहते हैं, उनकी और भागते हैं.
रिजल्ट आता है : धक्का!

 

साईं बाबा के दर्शन करने वाले चार से छ: घंटे भी भीड़ में खड़े रहते हैं.
उनका सिंहासन सोने  का है, ये जान कर भक्त लोग बड़ा उत्साह दिखाते हैं.
15 -20  फ़ीट की दूरी से मात्र 15-20  सेकंड दर्शन करके अपने को धन्य मानते हैं.
ये उस बाबा के दर्शन करते हैं, जिस फ़क़ीर ने अपने जीवन में फ़टे हुवे वस्त्र  पहने.
आज उस बाबा के दर्शन करने इसलिए जाते हैं कि काम बन जाए.

 

अब आते हैं जैन धर्म की ओर !

किस जैन मंदिर में प्रतिमाएं सोने की  नहीं हैं?
किस जैन मंदिर में प्रभु की आंगी चांदी और रत्नों की नहीं है?
किस जैन मंदिर में दरवाजे चांदी के नहीं हैं?
किस जैन मंदिर में दीवारों पर सोने का काम नहीं है?

ये उन मंदिरों की बात हैं जहाँ रोज प्रभु दर्शन-पूजन होते है.

 

2012 में श्री महावीर स्वामी एक जिनालय के जीर्णोद्धार के समय मंदिर  के  लिए चांदी का ताला  बनवाने का
आर्डर चेन्नई में दिया गया. .बनाने वाले ने उसे प्रतिक रूप ना समझ कर पूरा एक किलो चांदी का ताला बनाया.  बिल आया 75,000 रुपये! जिसने आर्डर दिया : उसने लोगों से  कहा अब एक ताले के इतने रुपये समाज कैसे देगा? कहने में जरा सी भूल के कारण ऐसा हुआ. अब मैं समाज को क्या मुँह दिखाऊंगा?

मंदिर की प्रतिष्ठा के समय मंदिर खोलने का चढ़ावा बोला गया. जिस भाई को टेंशन था, उसी भाई ने “एक दिन” मंदिर खोलने का चढ़ावा लिया : सत्रह लाख रुपये में! आज तक का ये सबसे बड़ा चढ़ावा है : सवेरे एक दिन के लिए  मंदिर खोलने का!

 

ऐसे चमत्कार जैन समाज रोज देखता हैं.

चमत्कार की बात हैं कि किसी भी चमत्कारी जैन मंदिर, जहाँ खूब भीड़ रहती हो, वहां कोई टिकट नहीं लिया जाता.
भगवान की प्रतिमा को “स्पर्श” किया जा सकता है, हर व्यक्ति के द्वारा जिसने पूजा की ड्रेस पहन रखी हो. और पूजा होती है चन्दन और  केशर से, जो हर श्रावक को मंदिर में ही फ्री मिले, ऐसी व्यवस्था होती है. एक साल का चन्दन केशर का खर्च कौन उठाएगा, उसमें भी श्रावकों में होड़ लगती है.

यानि जिन मंदिर में पूजा का विधान “श्रावक” द्वारा किया जाता है, हर एक श्रावक खुद “पुजारी” है. इसमें महिलायें, बच्चे-बूढ़े सभी शामिल हैं.

 

है किसी अन्य धर्म में ऐसा अधिकार हर भक्त को?

(अन्य मंदिरों में पुजारी मंदिर के मालिक हों और  भक्त भिखारी, ऐसा बर्ताव करते देखे गए हैं).

विशेष : माताएं अपने तीन महीने के बच्चे को भी गोद में लेकर भगवान के चरण स्पर्श करवाती है और आज तक कभी ये नहीं सुना गया कि उस समय छोटे से बच्चे ने सुसु किया हो. क्या  ये चमत्कार  से कम  है?

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