मंत्र जप शुरू करने से पहले रोज मंत्र-दाता को मन ही मन नमस्कार करें.
जैसे उवसग्गहरं का जप करें तो जिससे उवसग्गहरं सीखा
या जिसने उसके बारे में विशेष शिक्षा दी, उसे नमस्कार करें.
फिर जप चालू करें.

 

ऐसा करने से मंत्रदाता का सान्निध्य हर समय बना रहता है,
भले ही वो प्रत्यक्ष रूप से मौजूद ना हों.
“मन्त्र जप” करते समय ये देखने का प्रयत्न करो कि
“मंत्राक्षर” कितनी दूर तक जाते हैं.

 

शुरुआत में कुछ भी पता ना पड़े तो भी कोई बात नहीं.
कम से कम कुछ वर्षों में ये “अनुभव” अवश्य होता है.
“मंत्राक्षरों” को अपने शरीर को “सुरक्षित” करें.
फिर उन्हीं मंत्राक्षरों से आप दूसरों को भी “सुरक्षित” कर सकेंगे.

 

मंत्र सिद्धि के बारे में विशेष :

“जैनों की समृद्धि के रहस्य ”
पब्लिशर : jainmantras.com

(December,2016)

 

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