जैन धर्म, कर्म बंधन और कहे जाने वाले वर्तमान “जैनी”

“जो कर्म किये हैं, वो भोगने “पड़ेंगे” –

हर व्याख्यान में ये बात बार बार कही जाती है.

व्यवहार में  श्रावक इससे “भयभीत” होते हैं.
बार बार कहे जाने पर “कई” तो इसे “धमकी” भी समझते हैं
और “व्याख्यान स्थल” छोड़ देने में ही अपने को “सुरक्षित” समझते हैं.

रोज रोज तो क्या, कोई एक बार भी जलील (insult) होना पसंद नहीं करता!

मैंने कई साधू-साध्वियों को भी कर्म के आगे
“लाचार” होते देखा है.
कईओं की तो “जैन मन्त्रों” के प्रति उतनी “श्रद्धा” नहीं है,
जितनी आम श्रावक समझते हैं.

 

ये कड़वा सच है.
(हमारे शास्त्र तो यहाँ तक कहते हैं कि
“चौदह पूर्वधर” भी “समकितधारी” होंगे ही,
ये आवश्यक नहीं है
– इसीलिए तो उनके लिए भी “निगोद” खुला है
यदि वो “प्रमाद” करें तो).

आम श्रावक ये समझने लगता है कि जब इनके पास ही
“कर्म” तोड़ने का “उपाय” नहीं है,
तो फिर “ज्योतिषी/बाबा”
के पास जाना ही “उचित” है
जबकि वास्तव में एक “जैनी” के लिए वो “अनुचित” है.

(For proper and perfect solutions, frequently read jainmantras.com daily)

 

यानि “कर्म” करने में “धर्म” ना हो तो वो  “अधर्म” है.

यदि इतनी सीधी सी बात हमें समझ में आ जाए
और उसके अनुसार आचरण करें,
तो ही “मनुष्य जीवन” सफल होगा.

हमारे पूर्व जन्म के कर्म कैसे हैं?
हमारे वर्तमान कर्म कैसे हैं?
हमारे आने वाले कर्म कैसे हैं?

यदि अभी तक के जीवन,
वर्तमान जीवन और
भविष्य के लिए कि गयी व्यवस्था के बारे में
थोड़ा सा भी गौर करें तो (अपवाद को छोड़ कर)
साफ़ पता पड़ जाएगा कि
हमारे कर्म कैसे थे,
कैसे हैं,
और भविष्य में कैसे होंगे.

 

यदि आपका जन्म ही ऊँचे कुल और संपन्न घराने में हुआ है
तो इसका मतलब आपने पूर्व जन्म  में धर्म को खूब अपनाया था.

ऊँचे खानदान (well-to-do family) में जन्म होते हुए भी
गलत दोस्ती (Friendship) के कारण
शुरुआत “होटल” से होती हुई
फिर थोड़े से “घूँट” (Cheers) से गुजरती हुई
“धूमधाम” से “रात्रि-भोजन” और
साल के “अंत” में
ठीक रात को १२ बजे  “Happy New Year”
तक पहुँचती है;

ये सब आपका वर्तमान जीवन (Present Life) बता रहा है.

फिर वो “”Happy New Year”
का हर महीना कैसा होगा,
वो “पंचांग” (Calendar) में आ जाता है  कि

पूरा साल इसी तरह मौज मस्ती में  जाएगा. (Future predicted).

 

नई जनरेशन को ये सब बातें बकवास लग सकती हैं,
पर वो जरा इतना सा सोचे कि उसका स्वयं का ७-८ साल का बच्चा
“थोड़ा” सा “घूँट” उसके सामने ले ले, तो क्या हर्ज है!
बस यही बात आपके “पेरेंट्स” आपके बारे में सोचते हैं
जिनके तुम ” समझदार बच्चे” हो.

विशेष :

यदि आपके पेरेंट्स भी आपके साथ

“Happy New Year” इसी तरह मनाते हैं,

तो फिर आपका परिवार आपकी और अन्य की नज़रो में

“धन्य” हो सकता है,

पर वो “जैनी” नहीं हो सकता.

 

प्रश्न/शंका:
पूरी पोस्ट में क्या कहा गया है, कुछ समझ में नहीं आया.

उत्तर/निवारण:

रोज सवेरे उठते ही ऊपर बताये भगवान महावीर के फोटो को मात्र दो मिनट के लिए गौर से देखें,

एक जैनी को “कर्म” कैसा करना है,

सब समझ में आ जाएगा और कोई शास्त्र पढ़ने की जरूरत नहीं है.

error: Content is protected !!