“लोगस्स सूत्र” में तीर्थंकर के केवली और सिद्ध होने की दोनों बातें क्यों कही गयी है?
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तीर्थंकर पहले केवली बनते हैं.
फिर “धर्म-देशना” देते हैं.
फिर “सिद्ध-शिला” में
अनंत काल के लिए स्थित होते हैं.

*लोगस्स सूत्र*
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लोगस्स = लोक में
उज्जोअ = प्रकाश
गरे = करने वाले
धम्म = धर्म रुपी
तित्थ = तीर्थ का
यरे = प्रवर्तन करने वाले
जिणे = विजेता ( राग द्वेषादि के)
अरिहंते = त्रैलोक्य पूज्यों की
कित्तइस्सं = स्तुति करूँगा/करुंगी
चउवीसं पि = चौबीसोें
केवली = केवलियों की
उसभं = श्री ऋषभदेव
अजिअं = श्री अजितनाथ को
च = और
वंदे = मैं वंदन करता हुँ
संभवं = श्री संभवनाथ
अभिणंदणं = श्री अभिनंदन स्वामी को
च = और
सुमइं = श्री सुमतिनाथ को
च = और
पउमप्पहं = श्री पद्मप्रभ स्वामी को
सुपासं = श्री सुपार्श्वनाथ को
च = और
जिणं = जिनेश्वर को
चंदप्पहं = श्री चंद्रप्रभ
वंदे = मैं वंदन करता हुँ
सुविहिं = श्री सुविधिनाथ
च = यानि
पुप्फदंतं = श्री पुष्पदंत को
सीअल = श्री शीतलनाथ
सिज्जंस = श्री श्रेयांसनाथ
वासुपुज्जं = श्री वासुपूज्य स्वामी को
च = और
विमलं = श्री विमलनाथ
मणंतं = श्री अनंतनाथ
च = और
जिणं = जिनेश्वर को
धम्मं = श्री धर्मनाथ
संतिं = श्री शांतिनाथ को
वंदामि = मैं वंदन करता/करती हुँ
कुंथुं = श्री कुंथुनाथ
अरं = श्री अरनाथ
च = और
मल्लिं = श्री मल्लिनाथ को
वंदे = मैं वंदन करता/करती हुँ
मुणि – सुव्वयं = श्री मुनिसुव्रत स्वामी
नमि = नमिनाथ को
जिणं च वंदामि = जिनेश्वर को में वंदन करती हुँ
रिट्ठ-नेमिं = श्री अरिष्ट नेमि (नेमिनाथ) को
पासं = श्री पार्श्वनाथ
तह = तथा
वद्धमाणं च = श्री वर्धमान स्वामी (महावीर) को
एवं = इस प्रकार
मए = मेरे द्वारा
अभिथुआ = स्तुति किये गये
विहुय = से रहित
रय = रज
मला = मल
पहीण = मुक्त
जर = वृद्धावस्था
मरणा = मरण से
चउ-वीसं पि = चौबीसों
जिणवरा = जिनेश्वर
तित्थ = तिर्थ
यरा =प्रवर्तक
मे = मेरे उपर
पसीयंतु = प्रसन्न हों
कित्तिय = कीर्तन
वंदिय = वंदन
महिया = पूजन किये गये हैं
जे = जो
ए = ये
लोगस्स = लोक में
उत्तमा = उत्तम हैं
सिद्धा = सिद्ध हैं
आरुग्ग = आरोग्य के लिए
बोहिलाभं = बोधि लाभ
समाहि -वरं = भाव समाधि
मुत्तमं = उत्तम
दिंतु = प्रदान करें
चंदेसु = चंद्रो से
निम्मल = निर्मल
यरा = अधिक
आइच्चेसु = सूर्यो से
अहियं = अधिक
पयासयरा = प्रकाशमान
सागर = सागर से
वर = श्रेष्ठ
गंभीरा = गंभीर
सिद्धा = सिद्ध भगवंत
सिद्धिं = सिद्धि
मम = मुझे
दिसंतु = प्रदान करें

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परंतु अभी सोशल मीडिया में ये मैसेज वायरल  है:

1)बच्चों को आशीर्वाद इस तरह से देना
“तिथ्थयरा मे पसीयन्तु ”

(तीर्थंकर भगवान का आशीर्वाद तुम्हारे साथ हो)

2) बच्चे कोई काम से बाहर जारहा हो तो
” सिध्दा सिध्दि मम दिसन्तु ”

(भगवान आप का कार्य सिद्ध करे)

3) आप खुद घरसे किसी काम के लिए निकलते समय
” इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ”

कहकर घर से निकले” आप के इच्छा के अनुसार भगवान आप का कार्य सिद्ध करेंगे

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लोगस्स का ये “निम्नतर प्रयोग” है.
लोगस्स देता है सम्यक्त्व !
और कहाँ उपाय कर रहे हैं : मिथ्यात्व का पोषण करने के लिए !
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